दिनांक 1 अप्रैल को भोपाल में हुतात्मा हेमू कालानी जन्मशताब्दी समारोह संपन्न हुआ. इस समारोह में विदेशों से भी अनेक सिंधी भाषिक भाई – बहन आए थे. इन में से, कराची से आए हुए नारायणदास ने बताया की ‘पाकिस्तान में हिन्दू अपना कोई भी त्यौहार / उत्सव सार्वजनिक रूप से, खुले में नहीं मना सकते. मंदिर में या किसी के घर पर ही मनाना पड़ता हैं.‘ इस रामनवमी को बंगाल, बिहार आदि स्थानों पर जो कुछ हुआ, उसे देखकर लगता हैं, की ‘क्या, भारत के कुछ स्थानों पर भी हिन्दू अपना उत्सव सार्वजनिक रूप से नहीं मना सकते?’
इस वर्ष गुरुवार, 30 मार्च को रामनवमी थी. वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, देश के लगभग सभी गांवों में, शहरों में इस दिन भगवान राम की शोभायात्रा निकलती हैं. इस वर्ष भी निकली. किन्तु बंगाल के हावड़ा में, उत्तर दिनाजपुर जिले के डालखोला में, इस्लामपुर में, वडोदरा में, छत्रपती संभाजी नगर में (पूर्व के औरंगाबाद में), मुंबई के उपनगर मालाड में मालवणी बस्ती में इन शोभायात्रा पर न केवल पथराव हुआ, वरन लाठी, काठी, रॉड और बमों से हमला हुआ. डालखोला तो 1959 तक बिहार का हिस्सा था, जो बाद में पश्चिम बंगाल में चला गया. इस्लामपुर भी बिहार की सीमा से सटकर हैं. वडोदरा और छत्रपती संभाजी नगर में तो अधिकतम दंगाई पकड़े गए. किन्तु ऐसा पश्चिम बंगाल में नहीं हुआ. वहाँ हिंदुओं पर ही दंगा भड़काने का आरोप लगा. उन्हे ही गिरफ्तार किया गया. ऊपर से ममता बेनर्जी ने पश्चिम बंगाल के हिंदुओं को सलाह दी की ‘रमजान के इस पवित्र महीने में मुस्लिम मुहल्लों के पास न जाए..’
महाराष्ट्र के छत्रपती संभाजी नगर में एम आई एम के स्थानीय सांसद इम्तियाज जलील की उपस्थिति में दंगा भड़का. उपद्रवियों ने किराड़पुरा के हनुमान मंदिर में पत्थर बरसाएं और दस से ज्यादा पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले किया. पश्चिम बंगाल के दंगे यहीं पर थमे नहीं. दूसरे दिन, अर्थात शुक्रवार 31 मार्च को, जुम्मे की नमाज के बाद अनेक स्थानों पर मुस्लिम समुदाय ने आक्रमण किया. 1 अप्रैल को बिहार के सासाराम में दंगे भड़के. बाद में नालंदा और बिहार शरीफ में. आज 7 अप्रैल को भी बंगाल और बिहार के अनेक शहरों में स्थिति तनावपूर्ण हैं. अनेक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में रहने वाले हिन्दू अत्यंत दबाव में, डर के साये में जी रहे हैं. बिहार के अनेक हिन्दू, दंगे की रात से गायब हैं.
इन सब स्थानों पर ‘मोडस ऑपरेंड़ी’ एक जैसी थी. पहले हिन्दू शोभायात्रा या मंदिरों पर पत्थर फेंककर कठोरतम हमला करना और बाद में आरोप हिन्दू समूह पर लगाना. इस अभियान को जाने – अनजाने में मदद कर रहे थे, राजदीप सरदेसाई. पहले उन्होंने ट्वीट किया, एक हिन्दू युवक का विडिओ, जिसमे उस युवक के हाथ में एक देसी कट्टा दिख रहा हैं. मजेदार बात यह, की वह युवक उस कट्टे (गन) को लहरा नहीं रहा हैं, तो छुपा रहा हैं.
लेकिन उसी दिन बंगाल से ऐसे अनेक चित्र या विडिओ या रहे थे, जिनमे मुस्लिम युवक खुले आम लाठी, रॉड और तलवार घुमा रहे थे. हिंदुओं को मार रहे थे. रक्त से सने हिंदुओं के फोटो मीडिया में आ रहे थे. राजदीप सरदेसाई के सोशल मीडिया अकाउंट से ये सब नदारत थे. वे तो इस बात पर जोर दे रहे थे की कैसे हिन्दू राम नवमी शोभायात्रा में आक्रामक हैं. राणा अय्यूब 30 मार्च को सूरत के राम नवमी शोभायात्रा का एक विडिओ ट्वीट करती हैं, की कैसे यह शोभायात्रा एक मस्जिद के सामने से गुजर रही हैं. पिछले अनेक वर्षों से सूरत में शोभायात्रा का यही मार्ग हैं. मार्ग में मस्जिद पहले से हैं. तो ‘क्या किसी मस्जिद के सामने से कोई हिन्दू शोभायात्रा या जुलूस नहीं जाना चाहिए’, ऐसा राणा अय्यूब का कहना हैं?
इन वामपंथी पत्रकारों के ट्वीट्स का, आलेखों का परिणाम हुआ, OIC (Organization of Islamic Cooperation) पर. 57 इस्लामी देशों के इस संगठन ने, भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करते हुए, कहा की ‘भारत के अनेक राज्यों में मुस्लिम समुदाय पर जो हमले हुए, उनकी हम भर्त्सना करते हैं.‘ यह तो ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ जैसा हुआ. अपने ही देश में हिन्दू, अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव पर शोभायात्रा निकालता हैं, जुलूस निकालता हैं, मुस्लिम समुदाय अनेक स्थानों पर उन शोभायात्राओं पर हमला करता हैं, उत्सव को बंद करवाता हैं, और ओआईसी जैसा संगठन कहता हैं, ‘भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं हैं.‘
इन वामपंथी, हिन्दू द्वेष का चश्मा पहने पत्रकारों के कारण, उत्सव पर हमला करने वाले उपद्रवियों के कारण, हम हमारे आराध्य का उत्सव भी ठीक से नहीं मना सकते, यह हम सब का दुर्भाग्य हैं..!
[उपरोक्त लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं]