डा. राम मनोहर लोहिया कहते थे कि अंग्रेजों के बनाए प्रशासन तंत्र को हम जैसा का तैसा चला रहे हैं। 1909 में गांधी जी ने भी हिन्द स्वराज्य में पश्चिमी सभ्यता को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया। यही नहीं, गांधी जी 1945 में भी अपने उसी विचार पर अटल रहे। 1945 के अक्टूबर में नेहरू के साथ हुए उनके पत्र व्यवहार में गांधी जी ने हिन्द स्वराज की बात को ही फिर से रेखांकित किया। लेकिन क्या भारत उस रास्ते पर चला।
महात्मा गांधी का कहना था कि भारत शहरों में नहीं गावों में रहेगा, भारत महलों में नहीं झोपड़ों में रहेगा। अब तो हम अट्टालिकाओं का निर्माण कर रहे हैं। यानि उल्टी दिशा में चल रहे हैं।
अब हमें यह समझना हो कि आखिर अंग्रेज भारत को इतना क्यों बदल पाए। हमने किसी नई रचना का सूत्रपात आजादी के बाद नहीं कर पे। या नही किया। अंग्रेजों की बनाई संस्थाओं का विस्तार करते चले जा रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि पहली बार किसी विदेशी का भारत पर स्थापित हुआ, सच तो यह है कि अंग्रेजों का राज तुलना में काफी कम रहा।
इतिहास पर नजर दौड़ाकर यह देखा जा सकता है, 1757 से 1857 तक सौ वर्ष होते हैं। वह सौ साल भारत पर राजनैतिक और सैनिक विजय को पूरा करने में समाप्त हो गए। 1857 में जब वह विजय पूर्णता पर पहुंची तो 90 साल बाद अंग्रेजों को यहां से जाना पड़ा। जाहिर है अंग्रेजों को राज करने के लिए सिर्फ 90 साल मिले। 100 साल तो राज्य को खड़ा करने में बिता दिए। इसकी तुलना में अन्य आक्रमणकारियों से करें तो बात साफ होती है कि अंग्रेजों को कम समय राज किया। लेकिन बदलाव बड़े कर गए।