आपको तो अरविंद केजरीवाल, लालू जी, मोदी और राहुल अलग-अलग देखने पड़ते हैं, हमें तो सौभाग्य से ये सभी कैरेक्टर एक ही आदमी में मिल गए हैं.
नाम इस भाग भरे का ले तो लूं मगर इस बुढ़ापे में सोशल मीडिया पर गालियां खाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा.
जब एक हफ़्ते पहले इमरान ख़ान के प्रवक्ता फ़व्वाद चौधरी ने ये सूचना उड़ाई कि नए प्रधानमंत्री खुले मैदान में शपथ ग्रहण करेंगे और इसके लिए सार्क देशों के नेता और इमरान ख़ान के क्रिकेटर और फ़िल्म जगत के दोस्तों को न्यौता दिया जा रहा है, तो लाखों लोगों की तरह मेरी ख़ुशी का भी ठिकाना न रहा.
मैं सोचने लगा कि कैसी रापचिक तस्वीर बनेगी जब पहली लाइन की कुर्सियों पर चीफ़ जस्टिस ऑफ़ पाकिस्तान साक़िब निसार, नरेंद्र मोदी, गावस्कर, जनरल बाजवा, आमिर ख़ान, हसीना वाजिद, नवजोद सिंह सिद्दू, अशरफ़ ग़नी, कपिल देव और कपिल शर्मा बैठे होंगे.
तहरीक-ए-इंसाफ़ के एक और नेता ने तो ये तक उम्मीद दिला दी कि सलमान ख़ान, शाहरुख़ ख़ान और ज़ीनत अमान भी आने के लिए बेकरार हैं.
मगर इमरान ख़ान ने अगले ही दिन ये कहकर हमारी ख़ुशी का ये कहकर गला घोंट दिया कि कोई नहीं आ रहा. यानी शपथ बहुत सादे तरीक़े से ली जाएगी और चाय के साथ छुहारे और बताशे बांट दिए जाएंगे.
मुझे लगता है कि मेहमानों को बुलाने का सारा खेल बस मोदी के नाम पर बिगड़ा. अगर मोदी को दावत दी और उन्होंने आने से इनकार कर दिया तो क्या होगा.
अगर वो वाक़ई आ गए तो फिर कहीं कोई शरारती टीवी चैनल इमरान ख़ान के पुराने वीडियो क्लिप न चला दे- नवाज़ शरीफ़ मोदी का यार है, मोदी के यारों को एक धक्का और दो.
पाकिस्तान ने मेरे हिसाब से एक मास्टर स्ट्रोक ज़ाया कर दिया. मान लीजिए मोदी अगर न आने के लिए बहाना बनाते तो दिल बड़ा रखने पर दुनिया में पाकिस्तान की वाह-वाह होती और मोदी के बारे में कहा जाता कि छाती भले ही छप्पन की हो मगर दिल अब तक बचपन का.
अगर मोदी आ जाते तो ढाई सालों से दोनों देशों के ताल्लुक पर जमी बर्फ़ थोड़ी-बहुत ज़रूर हटती और दोनों नेता जो पहले भी एक-दूसरे से मिल चुके हैं, एक-दूसरे की नीयत अच्छे से टटोल पाते.