देशभक्ति और इंसानियत जैसे शब्द धीरे-धीरे हमारी युवा पीढ़ी और बच्चों के लिए अर्थविहीन होते जा रहे हैं। ऐसे में फिल्म ‘जागृति’ एक पाठशाला की तरह है।
दरअसल, आजादी का महत्व और इसे हमने किस कीमत पर प्राप्त किया है, वे इसे नहीं समझते। वे उतना ही जानते हैं, जितना उन्होंने इतिहास की किताबों में पढ़ा है। वर्तमान और बेहतर भविष्य के लिए यह जरूरी है कि हम अपने बीते हुए कल को जानें।
फिल्म एक सशक्त माध्यम है। इसका प्रभाव लोगों के मन-मस्तिष्क पर लंबे समय तक रहता है। इसमें लोगों की सोच और व्यवहार को भी प्रभावित करने की क्षमता होती है। वर्ष 1954 में ऐसी ही दो फिल्में भारत में बनीं और प्रदर्शित हुईं। इन दोनों फिल्मों की न केवल तारीफ हुई, बल्कि इन फिल्मों को लेकर घर-घर में बच्चों के साथ चर्चा हुई।
दरअसल, वे फिल्में हमारे उन मूल्यों को बताती हैं, जिसे हमारी पीढ़ी में होना चाहिए। बच्चों पर केंद्रित ये फिल्में थीं- ‘जागृति’ और ‘बूट पॉलिश’। बाद में सरकार ने इन फिल्मों को स्कूलों और ग्रामीण क्षेत्रों में 16 एमएम के प्रोजेक्टर पर प्रदर्शित करवाया ताकि बच्चों तक राष्ट्रभक्ति, आत्म-सम्मान और मानवता का संदेश पहुंचाया जा सके। हालांकि अब 16 एमएम के प्रोजेक्टर इस्तेमाल में नहीं लाए जाते हैं।
आजकल हम स्कूली छात्रों के दिल दहला देने वाली अजीबों-गरीब हरकतों के बारे में सुनते-पढ़ते हैं, लेकिन उस जमाने में भी बिगड़े हुए बच्चे हुआ करते थे। इसे जागृति की कहानी से समझ सकते हैं।
संक्षेप में फिल्म की कहानी कुछ यूं चलती है- अमीर मां-बाप का एक बिगड़ा हुआ बेटा रहता है, जिसे आवासीय विद्यालय में इस उम्मीद से भेजा जाता है कि वह सुधर जाएगा। अपनी बुरी आदतें छोड़ देगा। स्कूल के प्रधानाध्यापक जो स्वयं हॉस्टल के वार्डन भी होते हैं, वे अनुशासनप्रिय होते हैं। सख्ती से इसका पालन करते हैं। फिल्म में यह भूमिका प्रसिद्ध अभिनेता अभि भट्टाचार्य ने निभाई है। जब बिगड़ा हुआ छात्र अजय (बाल कलाकर राजकुमार गुप्ता) स्कूल जाता है तो वहां भी दूसरे छात्रों और प्राध्यापकों को परेशान करने लगता है। एक रात वह कछुए की पीठ पर मोमबत्ती जलाकर रख देता है। रात के अंधेरे में जब वह कछुआ घूमता है तो सबको ऐसा आभास होता है जैसे मोमबत्ती हवा में घूम रही है। इससे सभी छात्र डर जाते हैं। अजय इस तरह की हरकतों से छात्रों को अक्सर डराने का करता था।
वहीं स्कूल के छात्रावास में शक्ति नाम का एक होनहार छात्र भी रहता है। शक्ति गरीब परिवार से है और अपाहिज भी है। वह बैशाखी के सहारे चलता है। वह अजय को समझाता है कि बुरी आदतें छोड़ दे और पढ़ाई पर ध्यान दे, लेकिन अजय सुधरने वाला नहीं था।
एक दिन वह होस्टल छोड़ कर भाग जाता है। शक्ति उसे रोकने की कोशिश करता है, लेकिन बैशाखियों के सहारे वह उसे पकड़ नहीं पाता। अजय को पकड़ने की कोशिश में शक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। इस हादसे से अजय को जीवन की सीख मिलती है। उसे महसूस होता है कि शक्ति की जान उसकी वजह से गई है। वह हॉस्टल वापस आता है और मेधावी छात्र बन जाता है।
|
इस फिल्म के गीत-संगीत भी ठोस संदेश देने वाले हैं। हेमंत कुमार के संगीत से सजे कवि प्रदीप द्वारा गाये गए गीत आज भी कर्णप्रिय लगते हैं। इस फिल्म का गाना- ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की…’ का फिल्मांकन ट्रेन में हुआ है। |
स्कूल की तरफ से बच्चों को सैर पर ले जाया जा रहा होता है। कवि प्रदीप ने स्वयं इस गाने को गाया है। अभि भट्टाचार्य बच्चों को ऐतिहासिक महत्व के स्थलों और पुरुषों के बारे में बताते हैं। वे राणा प्रताप, गंगा के घाटों, वीर शिवाजी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और जलियांवाला बाग हत्याकांड में मरने वाले शहीदों के बारे में बच्चों को बताते हैं।
इसी फिल्म का दूसरा गाना जिसे आशा भोंसले ने गाया है, वह साबरमती के संत महात्मा गांधी की कहानी कहता है। यह गीत इस तरह है- ‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल के, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’
फिल्म के अंत में अभि भट्टाचार्य स्कूल छोड़ने का निर्णय लेते हैं। अपने विदाई समारोह में वे बच्चों को देश को संभाल कर रखने का संदेश एक गीत के जरिए देते हैं। देशभक्ति से पूर्ण वह गीत है- ‘हम लाए हैं तुफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के।’ कवि प्रदीप के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी है।
कवि प्रदीप के गीत इस तरह हैं-
”पासे सभी पलट गए दुश्मन के चाल के
अक्षर सभी उलट गए भारत के भाल से मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के हम लाएं हैं तुफान से कश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के तुम्हीं भविष्य हो मेरे भारत विशाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।” |
इस गीत के अंतिम अंतरे में कवि प्रदीप ने 60 साल पहले ही आज की भविष्यवाणी कर दी थी। देश की सुरक्षा पर मंडराते खतरे को वे कुछ यूं लिखते हैं-
एटम बमों के जोर पर एंठी है ये दुनिया
बारूद के ढेर पर बैठी है ये दुनिया तुम हर कदम उठाना जरा देख भाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के। |
एक गंभीर मुद्दे पर बनी फिल्म जागृति व्यावसायिक रूप से भी सफल हुई थी। उस साल इस फिल्म को बेहतरीन फिल्म के लिए फिल्म फेयर अवार्ड के साथ-साथ राष्ट्रीय पुस्कार भी मिला था। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को चाहिए कि वह इस फिल्म को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करवाए। दूरदर्शन पर इस फिल्म को बार-बार दिखाया जाए, ताकि हमारे बच्चों में देशभक्ति की भावना जागृत हो।