सुभाष झा
सोशल मीडिया मतदाता के व्यवहार को प्रभावित करता है। उस पर जो कुछ चल रहा होता है, उससे वह अपनी एक राय बनाता है। मतदान करते समय वह राय भी मतदाता के निर्णय को प्रभावित करती है। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी. रावत ने बातचीत में यह कहा था। उन्होंने अमेरिकी चुनाव का हवाला देते हुए कहा कि वहां पर डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव को लेकर कई तरह की बातें हो रहीं हैं। सवाल यह है कि क्या बातें हो रही थीं? अगर खबरों पर गौर करें तो पता चलता है कि वहां के चुनाव को विदेशी ताकतों ने प्रभावित किया। सोशल मीडिया उसका एक जरिया बना और चुनाव प्रचार कैंब्रिज एनालिटिका ने किया। इसी कंपनी को कांग्रेस ने भी चुनाव प्रचार का ठेका दिया था। इसका खुलासा शहजाद पुनेवाला ने किया। उन्होंने बताया कि 2019 के लिए एनालिटिका ने खाका तैयार किया था, जो कांग्रेस को भेजा गया था। कहा जाता है कि वह खाका आम चुनाव के लिए तैयार हुआ था। उसी के हिसाब से चुनाव अभियान चलाना था। तो जाहिर है चला भी होगा। उसके लिए एनालिटिका ने करोड़ों रुपये ऐंठे भी होंगे। इसमें कोई बुराई भी नहीं है।
कांग्रेस जिससे चाहे उससे चुनाव प्रचार कराए। उसे लेकर आसमान सिर पर उठाने की क्या जरूरत है? यह सवाल कोई भी पूछेगा। तो उसका जवाब ‘द गार्जियन’, ‘न्यूयार्क टाइम्स’ और ‘द आब्जर्वर’ की रिपोर्ट में है। दिसंबर 2015 में, ‘द गार्जियन’ लिखता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनेता टेड क्रूज ने अमेरिकी लोगों का फेसबुक डेटा चुनाव में इस्तेमाल किया। क्यों? मतदाताओं को लुभाने के लिए। हैरान करने वाली बात यह है कि जिन जिन फेसबुक यूजर्स की जानकारी लीक हो रही थी, इसकी भनक तक नहीं थी। उन्हें वे जानते ही नहीं थे कि फेसबुक उनकी व्यक्तिगत जानकारी कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनी को बेच रही है। ये कम्पनियां इस जानकारी का अध्ययन करती हैं और उससे जो निष्कर्ष निकलता है, उससे राजनीतिक पार्टियों को बेचती हैं। उसका उपयोग चुनाव में होता है। इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मार्च 2018 में सामने आई। तब कई अखबारों ने इस पर लिखा।
यह किया कांग्रेस के लिए कैंब्रिज
एनालिटिका ने कांग्रेस के चुनाव प्रचार का प्रस्ताव तैयार किया था। 50 पेज के इस प्रस्ताव में 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार का खाका है। उसमें लिखा है कि कंपनी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव और तीन राज्यों के चुनाव प्रचार में सहयोग देगी। कैसे? उसका पूरा ब्यौरा प्रस्ताव में मौजूद है। अगर कांग्रेस के चुनाव अभियान को देखें तो जाहिर होता है कि उसे कैंब्रिज एनालिटिका ही चला रही थी। कारण यह है कि एनालिटिका के काम करने का एक तरीका है। वह यह कि सामने वाले की छवि को ध्वस्त करना। प्रधानमंत्री के प्रति बेहद तीखे तेवर वाली इसी रणनीति पर कांग्रेस चल रही थी।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ और ‘द आब्जर्वर’ ने फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका के बीच डाटा आदान प्रदान के बारे में बताया। यहीं से फेसबुक और कैंब्रिज एनालिटिका के डाटा घोटाले का पर्दाफाश हुआ था। इस मामले में सर्वाधिक विश्वसनीय जानकारी कैंब्रिज एनालिटिका के पूर्व कर्मचारी क्रिस्टोफर वाइली ने दी। क्रिस्टोफर ने बताया कि कितनी बड़ी मात्रा में, किस तरह का, किन लोगों का डाटा बेचा गया और खरीदारों ने इस जानकारी को किस तरह इस्तेमाल किया। अब सवाल यह कि किस प्रकार की जानकरी बेची गई। रिपोर्ट में इसका जवाब है।
कैंब्रिज एनालिटिका ने लोगों की उम्र, जन्मदिन, पेज लाइक, उनकी आदतों, पसंद-नापसंद, इंटरनेट गतिविधियों, यूजर्स की लोकेशन जैसे उसके शहर और देश के नाम, शिक्षा, जाति, धर्म आदि की जानकारी जुटाई। इसके आधार पर एनालिटिका, यूजर्स का प्रोफाइल तैयार करती है। उससे यह पता लगाया जा सकता कि फलां व्यक्ति किस पार्टी के विचारों का समर्थन करता है और किस पार्टी का विरोध करता है, वह देश के किन मुद्दों पर नाराज है या खुश है, किस जगह वह घूमने जाना चाहता है या घूम कर आया है, कौन से ब्रांड के कपड़े, जूते और मोबाइल को पसंद करता है। इसके जरिए कैंब्रिज एनालिटिका ने उन राजनीतिक पार्टियों को सेवाएं देनी शुरू की जो कि चुनाव जीतना चाहते थे। इस तरह कैंब्रिज एनालिटिका राजनीतिक पार्टियों को अपनी सेवाएं देनी लगी और राजनीतिक दलों को बताने लगी कि किस राज्य में किस तरह का मुद्दा उठाया जाये, किस मुद्दे पर रैली की जाये और भाषणों में किन-किन मुद्दों को शामिल किया जाये और किस तरह के विज्ञापन बनाए कि पार्टी एक विशेष वर्ग, धर्म, जाति या क्षेत्र के लोगों को उसकी तरफ मोड़ने में कामयाब हो जाए। इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
कांग्रेस के लिए कैंब्रिज एनालिटिका ने सोशल मीडिया पर कई नरेटिव गढ़े। उसके लिए दिक्कत यह हो गई कि मोदी समर्थकों ने कैम्ब्रिज एनालिटिका के सारे विश्लेषण को ध्वस्त कर दिया। एनालिटिका का सरकार विरोधी अभियान जनता के बीच कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाया। मान लीजिए 2019 का आम चुनाव जीतने के लिए किसी पार्टी ने कैंब्रिज एनालिटिका से सौदा किया। अब एनालिटिका उस पार्टी को यह बता सकती है कि उसके पास 10 मिलियन ऐसे लोगों की जानकारी है जो कि देश में बेरोजगारी की समस्या के कारण सत्तारूढ़ दल से नाराज है। इसलिए उसे सत्तारूढ़ दल को इस मुद्दे पर घेरने के लिए रैली करनी चाहिए। यह देश के उन राज्यों में जहां पर बड़ी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्र रहते हों, काम करती है, ताकि छात्रों को बीजेपी के खिलाफ भड़काया जा सके और उनके वोट लिए जा सकें। कैम्ब्रिज एनालिटिका, पार्टी को बताएगी कि सोशल मीडिया पर ऐसे पेड कैंपेन चलाओ जिसमें बताया जाए कि सत्तारूढ़ दल छात्र विरोधी है। उसे देश के भविष्य से कोई सरोकार नहीं है। इस वजह से वह छात्रों पर ध्यान नहीं दे रही है। फिर गरीबों को सत्तारूढ़ दल के खिलाफ भड़काया जाएगा। उसके लिए भी नरेटिव गढ़े जाते हैं।
सोशल मीडिया के जरिए सत्तारूढ़ दल के विरोध में अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान उन लोगों के बीच में चलाया जाता है जो सत्तारूठ दल के समर्थन में होते हैं। इससे लोगों के दिमाग में यह बैठाने का प्रयास किया जायेगा कि सत्तारूढ़ दल गरीब विरोधी है क्योंकि उसके मुखिया इतने महंगे पेन का इस्तेमाल करते हैं जबकि हमारा देश इतना गरीब है। यहां सत्तारूढ दल और उसके मुखिया की छवि बिगाड़ने का प्रयास किया जायेगा। कांग्रेस ने यही काम कैंब्रिज एनालिटिका को सौंप रखा था। उसने सोशल मीडिया पर ‘चौकीदार चार है’ का नारा फैलाया। खासकर उन लोगों के बीच जो नरेन्द्र मोदी का समर्थन करते हैं। उनके नेतृत्व पर भरोसा करते हैं। इरादा साफ था, मोदी समर्थकों के बीच यह फैलाना कि उनका नेता भ्रष्ट है। इसलिए वे उसका साथ छोड़ें और एक ईमानदार नेता के साथ खड़े हों। यह तो बस एक उदाहरण है।
कांग्रेस के लिए एनालिटिका ने इस तरह के कई नरेटिव सोशल मीडिया पर गढ़े। लेकिन दिक्कत यह हो गई कि मोदी समर्थकों ने कैंब्रिज एनालिटिका के सारे विश्लेषण को ध्वस्त कर दिया। उनका सरकार विरोधी अभियान जनता और नरेन्द्र मोदी के बीच कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाया। हालांकि कोशिश पूरी हुई थी। तभी तो एक डाटा चोर को कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के लिए लगाया था। उन्हें लगा था कि यह कंपनी सोशल मीडिया के जरिए दुष्प्रचार करेगी और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना देगी। ठेका भी इसीलिए दिया गया था। कंपनी का प्रोफाइल भी है कि वह चुनाव जीताने का ठेका लेती है। कहा जाता है कि कैंब्रिज एनालिटिका एक व्यापारिक और राजनीतिक सलाहकार फर्म है। यह डाटा माइनिंग, डाटा बेचना और चुनावी प्रक्रिया के लिए डाटा का विश्लेषण करने का काम करती है। 2013 में इसको एससीएल समूह की शाखा के रूप में शुरू किया गया था। इस फर्म पर आंशिक रूप से मालिकाना हक रोबर्ट मर्सर के परिवार का है। इसके दμतर लंदन, न्यूयॉर्क शहर, और वाशिंगटन डीसी में हैं। माना जाता है कि चुनाव में हेराफेरी करना इसका धंधा है। कांग्रेस ने इसी वजह से प्रचार का ठेका कैंब्रिज एनालिटिका को दिया था।