प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास के विशेषज्ञ द्विजेंद्र नारायण झा वो भारतीय इतिहासकार हैं जिन्होंने ‘मिथ ऑफ़ द होली काउ’ जैसी किताब लिखी जिसमें वे साबित करते हैं कि प्राचीन भारत में गोमांस खाया जाता था. ज़ाहिर है, ऐसे विषय पर विवाद तो होगा ही.
हाल ही में प्रकाशित उनकी नई किताब ‘अगेंस्ट द ग्रेन: नोट्स ऑन आइडेंटिटी, इन्टॉलरेंस एंड हिस्ट्री’ में प्राचीन भारत में असहिष्णुता समेत उन विभिन्न मुद्दों पर रोशनी डाली गई है जिनका सामना आज का भारत राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर कर रहा है.
इस किताब और देश के मौजूदा हाल से जुड़े कई सवाल बीबीसी भारतीय भाषाओं की संपादक रूपा झा ने प्रोफ़ेसर डीएन झा से पूछे, जिनके जवाब उन्होंने ईमेल से भेजे हैं.
हिंदुत्व के विचारक प्राचीन भारत को स्वर्ण युग कहते हैं, जिसमें सामाजिक सद्भाव था. वहीं, मध्यकालीन भारत को वो आतंक का दौर ठहराते हैं, जिसमे मुस्लिम शासकों ने हिंदुओं पर बहुत ज़ुल्म ढाए. ऐतिहासिक सबूत इस बारे में क्या कहते हैं?
प्रोफ़ेसर डी.एन. झा- ऐतिहासिक साक्ष्य ये कहते हैं कि भारतीय इतिहास में कोई स्वर्ण युग नहीं था. प्राचीन काल को हम सामाजिक सद्भाव और संपन्नता का दौर नहीं मान सकते. इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि प्राचीन भारत में जाति व्यवस्था बहुत सख़्त थी.
गैर-ब्राह्मणों पर सामाजिक, क़ानूनी और आर्थिक रूप से पंगु बनाने वाली कई पाबंदियां लगाई जाती थीं. ख़ास तौर से शूद्र या अछूत इसके शिकार थे. इसकी वजह से प्राचीन भारतीय समाज में काफ़ी तनातनी रहती थी.