आज पंचायती राज दिवस है। एक बार ठहरकर सोचें। अपने संविधान को भी निहारे, और देखें की गांधी का ग्राम स्वराज उसमें कहां था। बनाने वालों ने आखिर आजादी के तुरंत बाद ही उन्हें भुला दिया। दरअसल भारत को भारत तो उसके गांव बनाते थे। गांव ही भारत की आत्मा थे। उसकी व्यवस्था ही पंचायती राज व्यवस्था थी। तो फिर संविधान बनाने वालों ने इसे नजरंदाज क्यों किया।
दरअसल दिखने में चाहे जो दिखे। संविधान सभा में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका बी.एन राव की थी, राव आईसीएस अधिकारी थी। वायसराय ने संविधान सभा का सलाहकार बनाया था। इसके पहले राव 1935 के कानून का जिम्मा संभाल चुके थे। बी.एन.राव यूपरोपीय रंग में रंगे हुए भारतीय बुद्धिजीवी थे। उन्होने यूरोप,अमेरिका की यात्रा कर भारतीय संविधान के लिए सामग्री भी जुटाई। उनके सामने माडल था यूरो अमेरिकन। जो बी.एन.राव ने ड्राफ्ट बनाया उस पर ही संविधान बना। लोग चाहे जो कहे पर संविधान सभा के ज्यादातर सदस्य निष्क्रिय थे। इस प्रक्रिया से तो महात्मा गांधी को भी अलग रखा गया। इसे समझने के पर्याप्त तथ्य हैं।
संविधान सभा निर्माण के 6 महीने पहले श्रीमन नारायण अग्रवाल ने ‘गांधियन कास्टीट्यूशन फार फ्री इंडिया’ पुस्तक लिखी। उसकी भूमिका गांधी जी ने लिखी थी। उसमें वो कहते हैं कि श्रीमन नारायण ने मुझसे चर्चा की। लिखने के बाद मुझे दिखाया। मैने पूरे ध्यान से इसे पढ़ा। मैने पाया कि मेरे सुझाव इसमें हैं। जब सविधान का पहला प्रारूप सामने आया तो उसमें कहीं पर गांधी जी के विचारों का उल्लेख नहीं था। यहां तक कि 13 दिसंबर, 1946 को जब जवाहरलाल नेहरू ने संविधान के उद्देश्यों का जो प्रस्ताव रखा, उसमें भी कहीं गांधी जी के विचारों का उल्लेख नहीं हैं।
संविधान सभा का जब पहला ड्राफ्ट आया तो श्रीमन नारायण ने दिसंबर 1947 में गांधी जी का ध्यान इस ओर खींचा कि इसमें पंचायती राज का जिक्र नहीं है। इसके कारण तहलका मच गया। आखिरकार नवंबर 1948 में पहली बार पंचायती राज को लेकर बहस हुई। उस बहस से यह पता चला कि इसे लेकर बहुत सारे लोग पहले से ही बहुत दुखी थे। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने इस पर अफसोस जताया। डा.राजेन्द्र प्रसाद ने बी.एन.राव से पूछा कि ऐसा कैसे हो गया। बी.एन.राव का जवाब था कि प्रारूप को बदलना इस समय संभव नहीं है। इससे आप संविधान सभा। उसके निर्माण की प्रक्रिया का सहज अनुमान लगा सकते हैं।