नितिन गडकरी को ऐसे ही रोडकरी नहीं कहते। उन्हें विकास की पटरी पर योजनाओं का खाका खींचना बखूबी आता है। वह अपने कामकाज से इसे साबित भी करते हैं। साल 2014 में जब इन्हें सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय मिला तो लाखों करोड़ की योजनाएं अटकी पड़ी थी। राजमार्ग बनने की रफ्तार तो करीब करीब ठहर सी गई थी। अधिकारियों का अदालतों में ही चक्कर लगाते बीत रहा था। जिम्मेदारी मिलने के एक महीने के भीतर ही नेतिन गडकरी ने यार्ड में जा चुके राजमार्ग के कामकाज को फिर से विकास की पटरी पर ला खड़ा किया। आज राजमार्ग बनने की रफ्तार 30 किलोमीटर प्रतिदिन है। क्योंकि नितिन गडकरी को मालूम है कि सड़कें हिंदुस्तान की जीवन रेखा है। इसीलिए वह सड़क निर्माण से राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे हैं
आधुनिक विकास में सड़क एवं सड़क परिवहन का महत्वपूर्ण योगदान है। सड़क परिवहन ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। यह दिखाई देने लगा है कि सड़कों से जीवन में तीव्रता आई है। ऐसे में सड़कें आधुनिक सभ्यता की जीवन-रेखा बन गई है। इससे आवागमन की सुविधा तो बढ़ी ही है, साथ-साथ व्यापार बढ़ाने और प्रशासन को चुस्त-दुरूस्त करने में भी अभूतपूर्व सफलता मिली है। यह दावा गलत नहीं है कि मानव सभ्यता के विकास में औद्योगीकरण के कारण जो परिवर्तन हुआ है, वह सड़क और सड़क परिवहन के बिना संभव नहीं था।
भारत जैसे विशाल और कृषि प्रधान देश में सड़कों ने विकास का नया अध्याय लिखा है। भारतीय उपमहाद्वीप को यदि हम मानव शरीर समझें तो सड़कें उसकी धमनियां हैं, जो पूरे शरीर में रक्त का संचार करती हैं। किसी भी देश के आर्थिक जीवन में परिवहन व्यवस्था का अत्यधिक महत्व होता है। वर्तमान प्रणाली में यातायात के अनेक साधन है। जैसे- रेल, सड़क, तटवर्ती नौ-संचालन, वायु परिवहन इत्यादि। पिछले वर्षों में इन क्षेत्रों का उल्लेखनीय विकास और विस्तार हुआ है। क्षमताएं बढ़ी है। वहीं सड़क परिवहन ने भी यातायात को सुगम बनाने के साथ-साथ देश को एक कोने से दूसरे कोने तक जोड़ने में अपनी महती भूमिका निभाई है।
सड़कों से जहां देश में सांस्कृतिक एकता मजबूत हुई है, वहीं पर आर्थिक रूप से भी देश का एक भाग दूसरे भागों से जुड़ा है। भारत जैसे विशाल देश में जहां लगभग 6 लाख गांव हैं, वहां हर स्थान पर रेल लाइन बिछाना संभव नहीं है। देश की भौगोलिक स्थिति भी इस बात की इजाजत नहीं देती है। लेकिन देश में यातायात के विभिन्न प्रकार में सड़क परिवहन सबसे सरल, सुगम और सस्ता है। आधुनिक विकास को सुदूर गांवों तक पहुंचाने के साथ ही सड़क परिवहन भारत की एकता, आपसी समन्वय के साथ ही देश की राजनीतिक तथा आर्थिक विकास को समृद्ध किया है।
भारतीय सड़कों का जाल विश्व का सबसे बड़ा सड़क जाल है। सड़क परिवहन छोटी-से-छोटी, मध्यम दूरी के साथ-साथ अब लंबी दूरी तय करने का भी महत्वपूर्ण साधन बन चुका है। यह परिवहन सबसे विश्वसनीय और सहज उपलब्ध है। सड़क परिवहन घर-घर जाकर सेवाएं उपलब्ध करा सकता है। यह गांवों को बाजारों, कस्बों, प्रशासनिक व सांस्कृतिक केन्द्रों से जोड़ता है और इस प्रकार उन्हें देश की मुख्य धारा में शामिल करता है।
सड़क परिवहन सुदूरवर्ती पहाड़ी, मरुस्थलीय, जनजातीय तथा पिछड़े क्षेत्रों को भी आपस में जोड़ता है। मानव एवं यंत्रों के संचलन में तेजी लाकर सड़क परिवहन देश की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सड़क यातायात कच्चे माल, तैयार माल एवं श्रम के संचलन द्वारा कृषि और उद्योगों की मदद करता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार निर्माण में सहायता करता है।
यदि ध्यान से अध्ययन करें तो पाएंगे कि देश के निरंतर विकास में सुचारू और समन्वित परिवहन प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सड़कों के निर्माण एवं प्रसार ने देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कम एवं मध्यम दूरियां तक के लिए यह यातायात का सर्वाधिक सुगम एवं सस्ता साधन है। भारत के धरातलीय विशेषताओं के कारण परिवहन के अन्य साधनों का उपयोग एक सीमा तक ही किया जा सकता है। इसलिए सड़कों का महत्व अपने आप बढ़ जाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण बिंदु सवारियों की संख्या में लगातार होने वाली वृद्धि है। जिसके कारण देश में लगातार सड़कों की लंबाई बढ़ती जा रही है।
कुछ सालों पहले के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सड़कों की कुल लम्बाई बढ़कर 33 लाख 40 हजार किमी हो गई है। इनमें 65,754 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग तथा 1,29,431 किमी राज्य राजमार्ग 4,70,000 किमी मुख्य जिला सड़कें और लगभग 26,50,000 किमी अन्य जिला और ग्रामीण सड़कें शामिल हैं। राष्ट्रीय राजमार्गो की कुल लम्बाई में से 32 प्रतिशत एकल और मध्यवर्ती लेन, लगभग 55 प्रतिशत मानक 2- लेन ओर शेष 13 प्रतिशत 4- लेन वाली अथवा उससे ज्यादा चौड़ी सड़कें है।
आज भारत में सड़क परिवहन आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता का महत्वपूर्ण संघटक है। यह मूलभूत और आर्थिक आवश्यकताओं को जनसमुदाय तक पहुंचा रहा है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय सड़क निर्माण में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री और कचरा समझ कर फेंके गए चीजों को भी सड़क निर्माण में इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित कर रहा है। सड़क परिसंपत्ति प्रबंधन व्यवस्था विकसित करके इन मामलों को तत्काल हल करने पर जोर दिया जा रहा है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से जुड़ी शोध संस्थाओं को जमीनी स्तर पर काम करने की सलाह दी जा रही है। इसके अलावा देश में न्यूनतम लागत के साथ सभी बस्तियों को संपर्क मुहैया कराने के लिए सर्वोत्तम सड़क नेटवर्क नियोजन तकनीक को विकसित करने के लिए संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
देश का भूगोल और जलवायु एक क्षेत्र से लेकर दूसरे क्षेत्र तक अलग-अलग है। भारत की पाकिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से सटी लंबी सीमा भी है। इसके पूर्व, पूर्वोत्तर, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में पर्वतीय इलाके हैं। यहां विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र भी है- विशेषकर राजस्थान और गुजरात में तथा विशाल तटीय क्षेत्र है। कुछ इलाकों में बहुत ज्यादा बारिश होती है, कुछ इलाकों में कम बारिश होती है। क्षेत्र और जलवायु में इतने बड़े पैमाने पर विविधताएं भारत में सड़क निर्माण के कार्य को चुनौतीपूर्ण बना देती है।
भारत के विकास के लिए उचित सड़क नेटवर्क की आवश्यकता को बहुत पहले ही समझ लिया गया था। नागपुर योजना (1943-61) के नाम से विख्यात, पहली सड़क विकास योजना है। इस योजना में पहली बार देश में सड़कों की जरूरत को दीर्घकालिक आधार पर देखा गया। पहली बार ही सड़क प्रणाली को कार्यक्रम के अनुसार अनुक्रम में वर्गीकृत किया गया, जिनमें राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच), राज्य राजमार्ग (एसएच), प्रमुख जिला सड़कें (एमडीआर), अन्य जिला सड़कें (ओडीआर) और ग्राम सड़कें (वीआर) शामिल थीं।
सड़कों की अंतिम दो श्रेणियां देश की ग्रामीण सड़क व्यवस्था को आकार देती हैं। बाद के 20 वर्षों में सड़क विकास योजनाओं में सभी श्रेणियों की सड़कों का निर्माण करके देश में सड़कों का घनत्व बढ़ाए जाने पर पर्याप्त जोर दिया गया। भारत का कुल सड़क नेटवर्क लगभग 46 लाख किलोमीटर है, जिसमें ग्रामीण सड़कें 26 लाख किलोमीटर हैं। नवीनतम सड़क विकास योजना विजन 2021 में जिला स्तर पर 100 से ज्यादा आबादी वाली सभी बस्तियों को हर मौसम में उपयुक्त सड़कों से जोड़ते हुए नियोजित ग्रामीण सड़क नेटवर्क विकास पर जोर दिया गया है।
सड़क विकास हेतु बनाई गई नागपुर योजना के अंतर्गत पहली बार सड़कों को चार वगों में विभाजित किया गया था। ये वर्ग हैं- राष्ट्रीय राजमार्ग, प्रांतीय राजमार्ग, जिला सड़कें और ग्रामीण सड़कें। राष्ट्रीय राजमार्ग की श्रेणी में आने वाली सड़कें चौड़ाई एवं लंबाई के अनुसार राज्यों की राजधानियों, बंदरगाहों, औद्योगिक व खनन क्षेत्रों तथा राष्ट्रीय महत्व के शहरों एवं कस्बों को जोड़ते हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई लगभग 82,621 किलोमीटर है। देश की कुल सड़क लम्बाई में राष्ट्रीय राजमार्ग मात्र 1.7 प्रतिशत में विस्तृत हैं, परंतु इन मार्गों के द्वारा 40 प्रतिशत सड़क यातायात की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। इन राजमार्गों की देखभाल केंद्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा की जाती है।
राष्ट्रीय राजमार्ग के बाद प्रांतीय राजमार्ग का नंबर आता है। ये एक राज्य के भीतर व्यापारिक एवं सवारी यातायात के मुख्य आधार होते हैं। ये राज्य के प्रत्येक कस्बे को राज्य की राजधानी, सभी जिला मुख्यालयों, राज्य के महत्वपूर्ण स्थलों तथा राष्ट्रीय राजमार्ग से संलग्न क्षेत्रों के साथ जोड़ते हैं। इन राजमागों का निर्माण व रख-रखाव करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी होती है। जिसे मुख्यत: हर राज्य का लोक निर्माण विभाग देखता है। तीसरे नंबर की सड़कों में जिला सड़कें आती हैं। ये सड़कें बड़े गांवों एवं कस्बों को एक-दूसरे से तथा जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं। ये अधिकांशत: जिले की सीमा के अंदर ही होती हैं। इनका निर्माण एवं रख-रखाव जिला परिषदों या संबंधित सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है। चौथी श्रेणी में ग्रामीण सड़कें आती हैं जो गांवों को जिला सड़कों से जोड़ती हैं। ये सड़कें प्राय: संकरी तथा भारी वाहन यातायात के अनुपयुक्त होती हैं। इनका निर्माण एवं रख-रखाव ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाता है। इन चारों के अतिरिक्त, सड़कों के तीन और अन्य प्रकार हैं- सीमा सड़कें, अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग और द्रुत राजमार्ग।
हमारे देश के एक तरफ को छोड़ दिया जाए तो तीन तरफ से पड़ोसी देशों की सीमा लगती है। मुख्य रूप से हमारे देश से पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन की सीमा मिलती है। ऐसे में हमें सीमा पर सड़कों के निर्माण एवं रख-रखाव के लिए हमेशा सतर्क रहने की आवश्यकता महसूस हुई। सीमा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 1960 में सीमा सड़क विकास बोर्ड की स्थापना की गयी, जिसका उद्देश्य अल्पविकसित जंगली, पर्वतीय एवं मरुस्थलीय सीमा क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देना था।
सीमा सड़कों का एक अन्य उद्देश्य रक्षा सैनिकों के लिए अनिवार्य आपूर्ति को बनाये रखना भी था। सीमा सड़क संगठन एक कार्यकारी विभाग है, जो हिमालय तथा पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों एवं राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में सड़कों का निर्माण तथा रख-रखाव करता है। वर्तमान में बीआरओ द्वारा बंदरगाहों एवं हैलीपैडों का निर्माण भी किया जाता है। राष्ट्रीय राजमार्गों एवं स्थायी पुल निर्माण कार्यों के अतिरिक्त सीमा सड़क संगठन ने बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कई सड़कों से ग्रीष्म एवं शीत दोनों ही मौसम में बर्फ हटाने एवं साफ करने का प्रशंसनीय कार्य भी किया।
आज के समय में देश और राज्य सरकारों के अलावा अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी विकास और मानव संबंधी जरूरतों को विश्व स्तर पर पहुंचाने में लगी हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व बैंक की सहायता से भी राजमार्गों को निर्माण किया जाता है। ऐसी सड़कें एशिया-प्रशांत आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (इस्केप) के साथ किये गये समझौते के तहत बनाये गये हैं। इनका उद्देश्य भारत की महत्वपूर्ण सड़कों को पड़ोसी देशों (पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार तथा बांग्लादेश) के साथ जोड़ना है।
इन सबके साथ सरकार ने यातायात के त्वरित विकास को ध्यान में रखते हुए एक्सप्रेस-वे की अवधारणा बनाई। इन राजमार्गों के निर्माण से देश में यातायात के संचलन में तेजी आई। द्रुत राजमार्ग प्राय: कंक्रीट के बने हुए कई लेन वाले राजमार्ग हैं। ऐसे राजमार्गों पर यातयात बाधित न हो और तेजी से चल रहे वाहानों का सड़क दुर्घटना से बचने के लिए सड़क के बीच और किनारे बाड़ लागाए जाते हैं। जिससे मनुष्य और जानवरों को सड़क के बीच आने से रोका जा सके।
सड़क परिवन मंत्री ने एक्सप्रेस-वे की रफ्तार से इस क्षेत्र में काम किया। कुछ साल पहले के आंकड़े इसकी तस्दीक भी करते हैं। 23 एक्सप्रेस-वे हैं तथा 17 निर्माणाधीन हैं। कुछ एक्सप्रेस हैं जो देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। जिसमें मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे, पश्चिमी एक्सप्रेस-वे जो मुंबई में है। पूर्वी एक्सप्रेस-वे जो एन.एच.-3 का एक भाग और मुंबई में है; अहमदाबाद-वड़ोदरा एक्सप्रेस-वे को राष्ट्रीय एक्सप्रेस-वे 1 (भारत) के नाम से जानते हैं। दिल्ली-गुड़गांव एक्सप्रेस-वे (आठ लेन सड़क जो स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का एक भाग है), दुर्गापुर एक्सप्रेस-वे (कोलकाता और दुर्गापुर के मध्य है), तथा यमुना एक्सप्रेस-वे आदि।
समुद्री यातायात प्राचीन काल से ही सिर्फ भारत ही नहीं पूरे विश्व में चलन में रहा है। पहले जलमार्गों से ही यातायात और व्यापार होता रहा है। ऐसे में बंदरगाहों तक पहुंचने के लिए भी स्थलमार्गों की जरूरत होती है। पुराने समय में बंदरगाहों तक जाने वाली सड़कों को पक्का कर दिया गया। बंदरगाहों तक जाने वाले सड़क मार्ग प्राचीन समय से ही विद्यमान रहे हैं। स्वतंत्रता के उपरांत सर्वप्रथम एक अंत:स्थलीय सड़क तंत्र विकसित किया गया, उसके बाद बंदरगाहों की ओर बहिर्मुखी सड़क जाल का निर्माण किया गया।
भारत के पांच राज्य गोआ, पंजाब, तमिलनाडु, केरल तथा हरियाणा सड़कों की सर्वाधिक सघनता वाले राज्य हैं। पूर्ण रूप से पंजाब-हरियाणा मैदान, गंगा मैदान, कर्नाटक के पठार, तमिलनाडु मैदान और केरल में उच्च स्तर की सघनता पायी जाती है। जबकि दक्कन क्षेत्र में मध्यम स्तर की तथा हिमालय, पूर्वोत्तर भागों तथा राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में निम्न स्तर की सघनता पायी जाती है। इस प्रकार बिखरी हुई अल्प जनसंख्या ऊबड़-खाबड़ भू-प्रदेश तथा आर्थिक विकास का निम्न स्तर इत्यादि ऐसे कारक हैं, जो सड़क तंत्र की सघनता को प्रभावित करते हैं।
आजादी के बाद सड़कों की जरूरत को देखते हुए नई आर्थिक नीति में आधारभूत संरचना के विकास पर अत्यधिक जोर दिया गया है। सड़क क्षेत्र को एक उद्योग घोषित किया गया है, जिसे आसान शतों पर कर्ज दिया जाएगा तथा कंपनियों को बॉण्ड जारी करके धन जुटाने की भी अनुमति दी जा चुकी है। अब सड़कों के निर्माण, रख-रखाव तथा संचालन में भागीदारी निभाने के लिए निजी क्षेत्र को आमंत्रित किया जा रहा है। इस नीति का आधार निर्माण, संचालन एवं स्थानांतरण (बीओटी) है। बड़ी कंपनियों को राजमार्ग क्षेत्र में प्रवेश देने के लिए एमआरटीपी प्रावधानों को शिथिल किया गया है। सभी राज्य सरकारों द्वारा पथकर को समाप्त कर दिया गया है तथा चुंगियों की संख्या घटायी जा रही है ताकि सड़कों पर यातायात का मुक्त प्रवाह संभव हो सके। चेक पोस्टों, चुंगियों तथा रेलवे फाटकों की बड़ी संख्या यातायात के प्रवाह को बाधित करती है, इसलिए इसे लगातार कम करने पर जोर दिया जा रहा है।