समरसता का बोध कराता कुंभ

प्रज्ञा संस्थानकुंभ हमारी एकता के प्रतीक हैं। भारतीय धर्म, रहन-सहन, विचारधारा एवं आध्यात्मिकता के जीवंत प्रमाण हैं। इनमें उपस्थिति होना परम सौभाग्य की बात है। यहां पहुंच कर मनुष्य व्यष्टि भाव से ऊपर उठकर समष्टिगत विचारों के सागर में लीन हो जाता है। दूरियां मिट जाती हैं। जाति, धर्म एवं रंगत भेदों की दीवारें ढह जाती हैं।

हमारी संस्कृति विश्व में अन्य संस्कृतियों, सभ्यताओं की तुलना में अधिक समृद्धशाली है। इस पर प्रत्येक भारतवंशी को गर्व है। हमारे सनातन जीवन दर्शन में व्यक्ति को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर चलने के लिए कुछ सूत्र बताए गए हैं। इनमें हमारा सत्यकर्म और सद् धर्म आज भी अन्य की तुलना में सुरक्षित है। इसी प्रेरणा को आधार मानकर व्यक्ति को कायिक, मानसिक और वाचिक शुद्धता प्रदान करने के लिए ‘मलयज शीतलाम शस्य श्यामलाम् मातरम्’ को आत्मसात करने वाले इस महान भारतवर्ष की ओर संपूर्ण विश्व की आशाएं हैं। यहां की मिट्टी में हमारी परंपराओं की सोंधी खुशबू आती है। महाकुंभ पर्व उसी आध्यात्मिकता और पौराणिकता का एक सुंदर स्पर्श है। जिसके संपर्क में आते ही समरसता का आत्म बोध स्वत: जाग्रत हो उठता है।

भारतीय संस्कृति, परंपराओं में तीर्थों एवं पर्वों का विशेष महत्व है। विश्व में भारत की भूमि, नदी, पर्वत, समुद्र, आदि में तीर्थ विद्यमान हैं। द्वादश मासों में अनेक पवित्र तिथियां अपना गौरव पूर्ण स्थान रखती हैं। इसी क्रम में कुंभ, महाकुंभ पर्व भी अपना विशेष स्थान रखता है। पुराणों की मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के पश्चात अमृत कलश जिन-जिन विशिष्ट स्थानों पर रखा गया वे कुंभ पर्व नाम से विख्यात हुए। जैसे हरिद्वार, प्रयाग, नासिक एवं अवंतिका (उज्जैन)।

स्कंद पुराण के अनुसार-

पद्मिनी नायके मेषे, कुंभ राशि गते गुरौ।

गंगा द्वारे भवेद्धोग: कुंभ नासा तदोत्तम:।।

बड़े हर्ष के साथ पुनीत पर्व हम सभी को सुलभ हुआ है। अनादि काल से विश्व के सभी जीव अपने-अपने प्रयासों के माध्यम से अमृत कलश की खोज में ही प्रयत्नशील हैं। अन्वेषण की वास्तविक प्रक्रिया का ज्ञान न होने से जीव को अमृत कलश के बजाय विष ही प्राप्त हो जाते हैं।

सत्य रूपी अमृत व सुख खोजने का क्रम ही मेला

अमरता के बदले मृत्यु एवं आनंद सरिता के बदले दुख की प्राप्ति होती है। भौतिक जीवन में जन्म-मृत्यु, जरा व्याधि दुखादि विष से संत्रास्त प्राणी सदैव उस साधन की खोज में निरंतर लगा रहता है, जो वास्तव में विष ही होता है। अमृत अन्वेषण कि इस अनादि यात्रा के प्रारंभ में तो हम एकाकी ही रहे होंगे? इस क्रम में सदा ही असफल होते हुए भी हमने मिलकर अमृत कलश को खोजना शुरू किया होगा। सत्य रूपी अमृत व सुख खोजने का क्रम ही मेला है। जो वस्तुत: अमृत अन्वेषण की साधु रीति है।

मिलकर अमृत खोज की प्रक्रिया की सुचारूता की प्रामाणिकता पुराण के उस प्रसिद्ध व्याख्यान से भी सिद्ध होती है, जिसमें देव और दानवों दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन से अमृत को खोजा। अपनी-अपनी योग्यता एवं शक्ति के द्वारा आज  भी हम परिवार, समाज, राष्ट्र,जाति एवं संसार के रूप में मिलकर अमृतकलश की प्राप्ति के लिए परम व्यग्र हैं।धार्मिक अवमूल्यन को रोकने एवं नई दिशा देने हेतु हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही समय-समय पर साधु-संतों जमातों, नागाओं एवं धर्माचायों का समागम देश के कोने-कोने में होता चला आ रहा है। नई सदी में यह कुंभ (प्रयागराज) इसी श्रृंखला का आयोजन है। हम गर्व से कह सकते हैं कि आज जो कुछ संस्कृति और धर्म बचा है, वह इन्हीं समागमों व आयोजनों की ही देन है। वरना विश्व के अन्य देशों-धर्मों की भांति हमारा देश भी अपनी संस्कृति एवं धर्म को खो बैठता या रक्षा नहीं कर पाता। संस्कृति और धर्म से ही मानवता की रक्षा होती है। यह कुंभ इस मायने में विशेष उल्लेखनीय है। महत्वपूर्ण है, इस कुंभ को लेकर वर्तमान सरकारें भी व्यापक प्रचार-प्रसार कर इसे सामाजिक समन्वय की नींव बना रही हैं। वास्तव में कुंभ पर्व भारत ही नहीं अपितु विश्व के निवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं। अधिकांश विदेशी लोग मेलों के दर्शनार्थ यहां उपस्थित होकर भारतीयों की ‘वसुधैव कुटुंबकम’  की भावना के दर्शन करते और आश्चर्यचकित होते हैं।

हमारी एकता के प्रतीक

अगर हम यूं कहें कि यह मेला मात्र भारतीय नहीं रह जाते, बल्कि विश्वस्तरीय बन जाते हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन मेलों में अनेक धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। विभिन्न साधु संन्यासियों, विद्वानों के प्रवचन सुनने को मिलते हैं। इससे धार्मिक भावनाओं का उदय होता है। इस दौरान कहीं दान, कहीं प्रवचन, कहीं दीन हीनों की सेवा, कहीं कथा-प्रवचन, कहीं पुराण के उपदेश आदि के कार्यक्रमों को देखकर ऐसा आभास होता है, मानव धर्म अपने सभी अंगों सहित सशरीर इन मेलों के रूप में अवतरित होता है। यह कुंभ के मेले हमारी एकता के प्रतीक हैं। भारतीय धर्म रहन-सहन विचारधारा एवं आध्यात्मिकता के जीवंत प्रमाण हैं। इनमें उपस्थिति होना परम सौभाग्य की बात है। इनमें पहुंचकर मनुष्य व्यष्टि भाव से ऊपर उठकर समष्टिगत विचारों के सागर में लीन हो जाता है। दूरियां मिट जाती हैं। जाति धर्म एवं रंगत भेदों की दीवारें ढह जाती हैं। भारतीय संस्कृति की प्राचीनता एवं शाश्वतता से मन आनंद से विभोर हो जाता है। मानव जन्म धारण करने की सार्थकता सिद्ध हो जाती है। कुंभ के मेले विश्व के सबसे बड़े मेले हैं। मानवता के उद्भव और परमात्मा से महामिलन के मेले हैं। वैदिक सनातन धर्म का कुंभ मेला अमृत खोज का अनुपम गौरव वर्धक विराट एवं प्रमाणिक दिग्दर्शन है।

समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग इस कुंभ मेला में भाग लेकर अपनी अनादि अमरत्व तृषा को सुशांत करना चाहते हैं। वैसे तो संसार के सभी मिलन ही जाने-अनजाने में अमृत खोज की यात्रा में ही हैं। जो व्यक्ति कुंभ का लाभ प्राप्त करता है, उसको देवता उसी प्रकार नमन करते हैं, जैसे दरिद्र नारायण किसी धनकुबेर को करता है। इस महापर्व में उपस्थित होकर अपने जीवन को सार्थक करें एवं सच्ची भारतीयता का दर्शन करें

वास्तव में कुंभ पर्व भारत ही नहीं, अपितु विश्व के निवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं। अधिकांश विदेशी लोग मेलों के दर्शनार्थ यहां उपस्थित होकर भारतीयों की ‘वसुधैव कुटुंबकम्’  की भावना के दर्शन करते और आश्चर्यचकित होते हैं।

 (युगवार्ता से साभार )

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