हिंदू समाज के पर्व उत्सवों आदि के पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार होता है। युगों-युगों से समाज को अनुप्रमाणित कर रहे कुंभ पर्व के साथ भी वैज्ञानिक रहस्य छिपे हुए हैं। कुंभ पर्व शारीरिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक शुद्धि, जन-मन में उत्साह और समाज में सामूहिक भाव का निर्माण करता है।
तीर्थ और पर्व
हमारी सम्पूर्ण सृष्टि में दो प्रभावी अंश है, प्रथम आक्सीजन जो जीवन धारक है और दूसरा कार्बन डाई आक्साइड, जिसके बढ़ने पर जीवन संकट उत्पन्न होता है। पृथ्वी पर विभिन्न ग्रहों, उपग्रहों का प्रभाव पड़ता है, जिनके प्रभाव से किसी समय जीवनवर्धक तत्व बढ़ते हैं और कभी जीवन संहारक। इन ग्रहों आदि का पृथ्वी के किस विशेष क्षेत्र में क्या और कैसा प्रभाव कब पड़ेगा, इसका अध्ययन हमारे देश में हजारों वर्ष पूर्व ऋषियों द्वारा किया गया है। इसी आधार पर किस काल में कौन सा कार्य, किस प्रकार से किया जाए, यह निश्चित हुआ है। जिस स्थान पर यह विशेष अनुकूल प्रभाव अध्ययन किया गया, वे ‘तीर्थ’ बन गये और जिस विशेष काल में यह अनुकूल प्रभाव सिद्ध हुआ वे ‘पर्व’ कहलाये। इसीलिए विशिष्ट तीर्थों में विशिष्ट पर्वों पर एकत्र होने की परम्परा निर्माण हुई।
नवग्रहों के गुणावगुण
अपने सौर मण्डल का ‘वृहस्पति’ जीवन धारक तत्वों का प्रमुख केन्द्र माना गया है। वेदों में संभवत: इसीलिए इसके लिए ‘जीव’ शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘शनि’ ग्रह जीवन संहारक तत्वों का केन्द्र है। अपने इस मारक गुण के कारण उसको मारक-गृह (मारकेश) कहते हैं। सृष्टि में ‘सूर्य’ केन्द्र है, जिसमें हमारे शास्त्रों के अनुसार द्वादशांश (1/12 भाग) छोड़कर, शेष सब जीवनदायक है। सूर्य पर दिख रहे इस भाग को काले धब्बों के रूप में आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। धरती माता का उपग्रह चन्द्रमा पूर्णावस्था (पूर्णिमा) की स्थिति में जीवन वर्धक होता है। मान्यता है कि पूर्ण चन्द्र से अमृत वर्षा होती है। अमावस्या के क्षीण चन्द्रमा का स्वभाव इसके विपरीत माना गया है।
‘शुक्र’ ग्रह स्वभाव से सौम्य, परन्तु अन्य ग्रहों से पोषित माना जाता है, अर्थात यह अन्य ग्रहों से प्रभावित होकर जीवन संहारक तत्वों की वृद्धि करता है। इसलिए भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसको आसुरी ग्रह कहा गया है। ‘मंगल’ मनुष्य के रक्त और बौद्धिक विश्लेषण पर प्रभाव डालता है, इसलिए इसे युद्ध प्रिय बताया गया है। ‘बुध’ का अलग से प्रभाव नहीं माना जाता। वह तो अन्य प्रभावी ग्रह के साथ हो जाता है। फलत: उसको ज्योतिष शास्त्र में नपुंसक ग्रह कहा गया है।भारतीय ज्योतिष के अनुसार, ‘राहु एवं केतु’ स्वतन्त्र ग्रह न होकर छाया ग्रह हैं। जीवन संहारक तत्वों को बढ़ाने में सहयोगी होने के कारण इनको नीच ग्रह कहा जाता है।
विशद अध्ययन
हमारे पूर्वज ऋषियों ने जो अपने युग के श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का विशद अध्ययन किया था। ज्योतिष विज्ञान के अध्ययन को सरलता पूर्वक करने के लिए सम्पूर्ण नक्षत्र मण्डल को बारह भागों में बांटा गया है। इनको ही ‘राशि’ कहा जाता है। नक्षत्रों की आकृति के अनुसार इन राशियों को मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन नाम दिये गए हैं।
ब्रह्माण्ड के इस क्षेत्र विशेष (राशि) पर जिस-जिस ग्रह का विशेष प्रभाव पड़ता है, उस ग्रह को उस राशि का स्वामी माना जाता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है।सूर्य सिंह राशि और चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी माना जाता है, परन्तु कुछ ग्रह दो-दो राशियों पर प्रभाव डालते हैं। ‘शनि’ मकर तथा कुंभ राशियों का स्वामी है तो ‘मंगल’ मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। इसी प्रकार ‘बुध’ मिथुन और कन्या, ‘वृहस्पति’ धनु एवं मीन तथा ‘शुक्र’ वृष एवं तुला राशियों के स्वामी हैं।
वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
सृष्टि के जीवन संहारक, मारक ग्रह (मारकेश) के क्षेत्र में जब ‘वृहस्पति’ का प्रवेश होता है तो वह संहारक तत्वों का नाश कर जीवनवर्धक तत्वों को उत्प्रेरित करता है। समस्त प्रभाव क्षेत्र जीवनवर्धक हो जाता है। पृथ्वी के जिस केन्द्र (तीर्थ) पर यह स्थिति जितने समय (पर्व) तक प्रभाव डालती है, वहां का वातावरण जीवनवर्धक तत्वों से भरपूर होकर उल्लास और जीवन्तता से भर जाता है। युगों-युगों से समाज इस वैज्ञानिक घटना का उपयोग कर अपनी जीवनी शक्ति को बढ़ाता आ रहा है। ‘कुंभ पर्व’की यही वैज्ञानिक पृष्ठभूमि है।
हरिद्वार कुंभ
जीवन संहारक ‘शनि’ से प्रभावित कुंभ राशि में जब वृहस्पति प्रवेश करता है तथा सूर्य और चन्द्रमा मंगल के स्वामित्व वाली ‘मेष’ राशि में आते हैं तब इस ग्रहयोग में हरिद्वार का पंचपुरी क्षेत्र अमृतमय हो जाता है। इस ‘पर्व’ में तीर्थ क्षेत्र में नियमित जीवन बिताने और गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से प्रकृति प्रदत्त दुर्लभ ‘पर्व’ के अमृत योग से लाभान्वित हो व्यक्ति दीर्घजीवी होते हैं।
प्रयागराज कुंभ
दैत्य ग्रह ‘शुक्र’, वृष राशि और शनि ‘मकर’ राशि का स्वामी है। जब ‘वृहस्पति’ वृष राशि में और ‘सूर्य तथा चन्द्रमा’ मकर राशि में होते हैं, तब तीर्थराज ‘प्रयाग’ में अमृतवर्षा होती है। दूसरे शब्दों में शुक्र और शनि का प्रभाव नष्ट कर वृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा का योग उस तीर्थ को अमृतमय कर देता है। फलत: तीर्थराज प्रयाग में कुंभ होता है।
नासिक कुंभ
सूर्य के मारक भाग का प्रभाव जब पृथ्वी पर पड़ता है और भाद्रपद (भादों) की ऊष्मा से जन समाज त्रस्त होता है। उस समय जब ‘वृहस्पति’ सूर्य की राशि ‘सिंह’ में प्रवेश करता है, तो ज्योतिष शास्त्र बताता है कि गोदावरी नदी के पवित्र उद्गम क्षेत्र नासिक में अमृतमय जीवनवर्धक वातावरण होता है। फलत: उस समय ‘नासिक’ में कुंभ पर्व होता है।
उज्जैन कुंभ
जब सूर्य अपनी ही राशि ‘मेष’ में और चन्द्रमा शुक्र ग्रह की तुला राशि में प्रवेश करता है, इस समय महाकाल क्षेत्र (उज्जैन) में अमृतमय वातावरण होता है। उस समय ही ‘क्षिप्रा’ नदी में स्नान करने का विधान किया गया है। दूसरे शब्दों में उज्जैन तीर्थ में कुंभ पर्व का स्नान होता है। युगयुगीन परम्परा से विकसित कुंभ पर्व जिन चार तीर्थों में होते हैं, वहां का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक महत्व ही करोड़ों आस्तिक जनों को सहस्त्राब्दियों से अपने समीप आमंत्रित करता रहा है।
आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है। सूर्य सिंह राशि और चन्द्रमा कर्क राशि का स्वामी माना जाता है, परन्तु कुछ ग्रह दो-दो राशियों पर प्रभाव डालते हैं। ‘शनि’ मकर तथा कुंभ राशियों का स्वामी है तो ‘मंगल’ मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है।
(युगवार्ता से साभार)